यूपीः 67 जिला पंचायतें जीती लेकिन क्षत्रिय बाहुबलियों के सामने बेबस ही रही बीजेपी

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उत्तर प्रदेश की सियासत में बाहुबलियों का दबदबा सपा से लेकर बसपा और बीजेपी तक में कायम है. योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार भले ही बाहुबलियों पर नकेल कसने का दम भरती हो, लेकिन जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में ठाकुर बाहुबलियों के आगे बीजेपी की एक नहीं चल सकी. यूपी के जौनपुर में धनंजय सिंह और प्रतापगढ़ में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के सियासी ताकत और बाहुबल के सामने बीजेपी बेबस नजर आई. दोनों ही जिलों में बीजेपी गठबंधन को मात खानी पड़ी है.

जौनपुर में धनंजय सिंह का वर्चस्व कायम

पूर्वांचल के जौनपुर में पूर्व सांसद व बाहुबली धनंजय सिंह की पत्नी श्रीकला रेड्डी ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की है. बीजेपी ने यह सीट अपनी सहयोगी अपना दल (एस) को दी थी. जौनपुर से ही सांसद रहे धनंजय सिंह का इस क्षेत्र में लंबे अर्से से दबदबा रहा है और उनका सियासी खौफ कायम है. यही वजह है कि अपना दल (एस) प्रत्याशी रीता पटेल के हौसले पहले ही टूट गए और पंचायत अध्यक्ष में धनंजय की पत्नी श्रीकला रेड्डी को अपना समर्थन दे दिया और खुद चुनाव से बाहर हो गई.

जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में श्रीकला रेड्डी को 43 वोट वोट पाकर जीत हासिल की है. वहीं, यह सीट अपना दल (एस) के खाते में जाने से बीजेपी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरीं निर्दलीय प्रत्याशी नीलम सिंह 28 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहीं जबकि जबकि सपा की निशी यादव को 12 वोट मिले. नीलम सिंह ससुर पूर्व सांसद कुंवर हरबंश सिंह लगातार आरोप लगाते रहे हैं कि जौनपुर जिले में धनंजय सिंह के खौफ के आगे प्रशासन नतमस्तक है. इतना ही नहीं वो अपना दल और धनंजय सिंह के बीच साठगांठ का आरोप लगाया था. इस तरह से धनंजय सिंह ने जौनपुर की सियासत में अपना सियासी वर्चस्व को कायम करने में कामयाब रहे.

प्रतापगढ़ में राजा भैया के सामने बीजेपी बेबस

प्रतापगढ़ में पूर्व मंत्री व विधायक रघुराज प्रताप सिंह के आगे बीजेपी बेबस और लाचार नजर आई. प्रतापगढ़ जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में राजा भैया ने अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक की उम्मीदवार माधुरी पटेल को जिताने में कायमाब रहे हैं. वहीं, सत्ताधारी बीजेपी की जिला पंचायत अध्यक्ष प्रत्याशी क्षमा सिंह को करारी मात खानी पड़ी है. राजा भैया की पार्टी ने महज 11 सदस्य जीते थे. इसके बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर अपने उम्मीदवार को बैठाने में कामयाब रहे और बीजेपी यहां संघर्ष करती नजर आई.

यूपी जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में प्रतापगढ़ उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जहां बीजेपी का इस बार भी खाता नहीं खुला सका है. हालांकि, सूबे में इस बार बीजेपी की सरकार होने के नाते पहली बार जिला पंचायत की कुर्सी पर कब्जा जमाने के लिए जोर आजमाइश कर रही थी. बीजेपी प्रत्याशी छमा सिंह के पति पप्पन सिंह ने जिला अधिकारी से मिले और शिकायत दर्ज कराई थी कि 36 जिला पंचायत सदस्य शहर के बाहर हैं, उन्हें लाया जाए. इतना ही नहीं शनिवार को वोटिंग के दिन बीजेपी प्रत्याशी छमा सिंह की गाड़ी को प्रशासन ने रोक लिया है, जिसके बाद तमाम पार्टी के नेता धरने पर भी बैठ गए थे और प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाय था.

बीजेपी ने जिला प्रशासन पर लगाया आरोप

दरअसल, जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव के बीच प्रतापगढ़ के एसपी आकाश तोमर के बीते दिनों अवकाश पर जाने को लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई थीं. ऐसे में डीजीपी मुख्यालय को यहां के जिला पंचायत चुनाव के दौरान शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए डीआइजी एलआर कुमार को भेजना पड़ा. इसके बावजूद राजा भैया के सियासी बल के आगे बीजेपी के एक नहीं चल सकी. राजा अपना दबदबा पूरी तरह से कायम रखा और उनकी उम्मीदवार माधुरी पटेल 57 में से 40 मत पाकर विजय रहीं. वहीं, सपा की अमरावती को 6 जबकि बीजेपी की क्षमा सिंह को महज तीन वोट मिले.

भाजपा नेताओं ने प्रतापगढ़ जिला प्रशासन और पुलिस पर जनसत्ता दल के प्रत्याशी की मदद का आरोप लगाते हुए बवाल किया. बीजेपी नेताओं की एएसपी पूर्वी सुरेंद्र प्रसाद द्विवेदी, सीओ सिटी अभय पांडेय, सीओ रानीगंज अतुल अंजान त्रिपाठी से धक्कामुक्की की. इस दौरान सीओ का बिल्ला नोंच लिया गया और पुलिसकर्मियों ने किसी तरह भाजपा नेताओं को गेट से हटाया. हालांकि, बीजेपी प्रत्याशी का कोई दांव काम नहीं आ सका.

प्रतापगढ़ में राजा का वर्चस्व कायम

बता दें कि पिछले ढाई दशक से प्रतापगढ़ की सियासत में राजा भैया की तूती बोलती है और जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में उनके समर्थक की ही जीत होती रही है. साल 1995 में राजा भैया के करीबी हरिवंश सिंह की पत्नी अमरावती सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचित हुईं थीं. फिर साल 2000 में बिदेश्वरी पटेल, साल 2005 में कमला देवी और वर्ष 2016 में उमाशंकर यादव अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे.
मायावती की सरकार में पहली बार बसपा ने 2010 में खाता खुला था और बसपा प्रत्याशी प्रमोद मौर्य ने राजा भैया के समर्थक घनश्याम यादव को पराजित किया था. इस चुनाव में मात प्रमोद तिवारी के चलते हो गई थी. पिछले चुनाव में सपा का भी खाता खुला था, यह बात और है कि सपा ने सिर्फ प्रत्याशी घोषित किया था और चुनावी रणनीति राजा भैया व उनकी टीम ने बनाई थी. इस बार राजा भैया और प्रमोद तिवारी मिलकर सपा और बीजेपी को धराशाही कर दिया.

(भाषा इनपुट आजतक से)

            

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