आचमन-स्नान योग्य नहीं गंगा का पानी

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वाराणसी के गंगा घाट पर हरे होते पानी या पनपते हरे शैवाल अब जिला प्रशासन के लिए चिंता का सबब बन चुके हैं. यही वजह है कि जिलाधिकारी ने पुलिस-प्रशासन, प्रदूषण बोर्ड और गंगा प्रदूषण के अधिकारियों की एक 5 सदस्यीय टीम बनाई है और इन्हें 3 दिनों के अंदर रिपोर्ट देने को कहा है. मंगलवार को यही टीम जांच के लिए गंगा घाट पहुंची थी. टीम बनने के बाद यह पहला दिन है जब ये लोग गंगा के हरे पानी का सैंपल लेने पहुंचे थे. पांच सदस्यीय यह टीम गंगा नदी की धारा के बीच जाकर हरे शैवाल पाये जाने के सम्बन्ध में उद्गम, श्रोत और गंगा घाटों तक इनके पहुंचने के कारणों को तलाशने में जुट गए हैं.

वाराणसी के 84 घाटों पर हरे शैवाल की समस्या, समय बीतने के साथ ही चिंता की वजह भी बनती जा रही है. पहले तो कुछ दिनों की बात मानकर स्थानीय लोगों के साथ ही प्रशासन ने भी इस घटना को हल्के में लिया, लेकिन अब वाराणसी प्रशासन को इससे निजात पाने के लिए गंभीर कदम उठाने पड़े हैं. इसी कड़ी में जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा की ओर से बनाई गई 5 सदस्यीय टीम 3 दिनों के भीतर रिपोर्ट सौंपने के मकसद से जांच के लिए गंगा घाट पर आई थी.

डीएम की ओर से अपर नगर मजिस्ट्रेट (द्वितीय), क्षेत्रीय अधिकारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सहायक पुलिस आयुक्त (दशाश्वमेघ), अधिशासी अभियन्ता बन्धी प्रखण्ड एवं महाप्रबन्धक गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई की पांच सदस्यीय टीम गठित की गई है. टीम के सदस्य मंगलावार को दशाश्वमेध घाट पर पहुंचकर हरे शैवाल वाले पानी के नमूनों को इकट्ठा करने का काम शुरू कर दिया.

यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी कालिका सिंह ने बताया कि पिछले 15-20 दिनों से गंगा में हरे शैवाल देखने को मिल रहे हैं. जिसके बाद से रोजाना मॉनिटरिंग चल रही है. इसके बाद अपस्ट्रीम कानपुर से लेकर प्रयागराज, मिर्जापुर और बनारस में भी हमने देखा तो बनारस की सीमा में पता चला कि बदला हुआ रंग ग्रीन एलगी का है. जिसका अध्ययन करने के लिए रिपोर्ट शासन को प्रेषित भी कर दी गई है. लेकिन तथ्यात्मक अध्ययन के लिए डीएम की ओर से पांच लोगों की टीम गठित कर दी गई है.

इसमें इसके स्रोत और निजात पाने का पता लगाया जा रहा है. जिसके बाद 10 जून तक परिणाम से अवगत कराया जायेगा. उन्होंने आगे बताया कि उनके ही विभाग के रीजनल ऑफिसर को सोनभद्र से इसी समस्या को लेकर फीडबैक मिला है. जिसमें मिर्जापुर के अपस्ट्रीम में हरे शैवाल थोड़ा कम थे, जबकि डाउनस्ट्रीम और चुनार में ज्यादा मिले. इसका कारण पानी का ठहराव, कम पानी का होना और 17 मई को अतिवृष्टि भी दो दिनों के लिए हुई थी.

इस वजह से पानी में फास्फोरस और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ गई और तापमान भी 25 डिग्री के अधिक होने पर ग्रीन एलगी का फार्मेशन होता है. अभी सोमवार को हुए सैंपलिंग में डीओ यानी डिसॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा 11.2 आया है, जबकि पहले यह 8-9 आती थी. फोटो सिंथेसिस और एलगी इसकी वजह हो सकती है.

उन्होंने बताया कि पहले से हरे शैवाल कम हुए हैं. बारिश होने या पानी छोड़े जाने पर यह अपने आप हट जाएगा. गंगा के पानी के आचमन या नहाने योग्य होने के सवाल पर कालिका सिंह ने कहा कि यह आचमन योग्य नहीं है और उनकी सलाह है कि लोग अभी गंगा घाट किनारे पर स्नान भी न करें.

(भाषा इनपुट से)

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