प्रयागराज के चौक ऐरिया मे गुड़मण्डी के राममूर्ति गुप्ता के वंशजों से चली आ रही अज़ादारी की प्रथा आज भी क़ायम है।इमामबाड़े के असली वारिसों के पाकिस्तान चले जाने के बाद से गुप्ता परिवार गुड़मण्डी मे इमामबाड़े की देख रेख करने के साथ ग़दर के वक़्त से अज़ादारी का सिलसिला लगातार चला रहा है।
आज भी बाबा दादा द्वारा क़ायम परम्परा निभाई जा रही है।माहे मोहर्रम के चाँद देखने के साथ गुप्ता परिवार प्रतिदिन पाक साफ हो कर जहाँ अपने देवी देवताओं की पूजा पाठ करता है वही इमामबाड़े मे मोमबत्ती व अगरबत्ती जलाना और अलम का बोसा लेकर हाँथ जोड़ कर प्रार्थना करना नही भूलता।
समय का चक्र भले लोगों मे नफरत की दिवार खड़ा करे लेकिन इमाम हुसैन की इन्सानियत की खातिर दी गई क़ुरबानी से इस परिवार मे आस्था हिलोरे मारती रहती है।दस दिनो तक शहर भर मे अशरे की सिलसिलेवार मजलिस के बीच लोग इस गुड़मण्डी के हिन्दू और मुस्लिम एक्ता के प्रतीक इमामबाड़े मे आना नही भूलते।
स्वतंत्रता सेनानी मुबारक मज़दूर के बेटे अरशद मज़दूर भी अपने वालिद (पिता) की परम्परा को क़ायम रखते हुए हर वर्ष कलकत्ता से इस इमामबाड़े मे मजलिस पढ़ने को लगभग पचास वर्षों से आ रहे है।इनके पहले इस मजलिस को बुज़ुर्ग ज़ाकिर ज़ायर हुसैन पढ़ा करते थे।लेकिन उनके बिमार रहने के कारण अब अरशद मज़दूर ने मजलिस पढ़ने की ज़िम्मेदारी सम्भाल ली है।
अन्जुमन ग़ुन्चा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सै०मो०अस्करी के मुताबिक़ गुप्ता परिवार मजलिस मे फर्शे अज़ा पर बैठ कर मजलिस भी सुनता है और मातम भी करता है।मजलिस मे आए लोगों के प्रति आभार जताने के साथ इनके परिजन लोगों को प्रसाद के रुप मे तरहा तरहा के तबर्रुक़ को बाँटने के लिए खुद खड़े रहते है।