भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना आज झारखंड की राजधानी रांची पहुंचे हैं।शनिवार को न्यायमूर्ति एनवी रमण जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर में शमिल हुए हैं।
यह झारखंड राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण (झालसा), रांची न्यायिक अकादमी झारखंड, और नेशनल यूनिवर्सिटी आफ स्टडी एंड रिसर्च इन ला (एनयूएसआरएल), रांची द्वारा आयोजित किया गया है।
‘एक न्यायाधीश का होता है विशिष्ट स्थान’
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना नेशनल यूनिवर्सिटी आफ स्टडी एंड रिसर्च इन ला, रांची द्वारा आयोजित ‘जस्टिस एस बी सिन्हा मेमोरियल लेक्चर’ पर ‘एक जज का जीवन’ पर उद्घाटन भाषण देते हुए कहा- आधुनिक लोकतंत्र में न्यायाधीश को केवल कानून बताने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। लोकतांत्रिक योजना में एक न्यायाधीश का विशिष्ट स्थान होता है, वह सामाजिक वास्तविकता और कानून के बीच की खाई को पाटता है। वह संविधान की लिपि और मूल्यों की रक्षा करता है।
न्यायाधीश ने कहा- कई मौकों पर, मैंने लम्बित रहने वाले मुद्दों को उजागर किया है। मैं जजों को उनकी पूरी क्षमता से काम करने में सक्षम बनाने के लिए भौतिक और व्यक्तिगत दोनों तरह के बुनियादी ढांचे में सुधार की आवश्यकता की पुरजोर वकालत करता रहा हूं।
उन्होंने आगे कहा – न्यायाधीशों के नेतृत्व वाले कथित आसान जीवन के बारे में झूठे आख्यान बनाए जाते हैं। निगलना मुश्किल है। लोग अक्सर भारतीय न्यायिक प्रणाली के सभी स्तरों पर लंबे समय से लंबित मामलों की शिकायत करते हैं। जज तुरंत प्रतिक्रिया न देते हैं, लेकिन इसे कमजोरी या लाचारी न समझें। जब स्वतंत्रता का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाता है, तो उनके क्षेत्र में बाहरी प्रतिबंधों की कोई आवश्यकता नहीं होती।
‘न्यायाधीशों पर बढ़ रहे हैं शारीरिक हमलें’
चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा- इन दिनों, हम न्यायाधीशों पर शारीरिक हमलों की बढ़ती संख्या देख रहे हैं…न्यायाधीशों को उसी समाज में रहना होगा, जिसे उन्होंने दोषी ठहराया है, बिना किसी सुरक्षा या आश्वासन के।
‘न्यायाधीशों को नहीं दी जाती है समान सुरक्षा’
सीजेआइ एनवी रमना बोले राजनेताओं, नौकरशाहों, पुलिस अधिकारियों और अन्य जन प्रतिनिधियों को अक्सर उनकी नौकरी की संवेदनशीलता के कारण सेवानिवृत्ति के बाद भी सुरक्षा प्रदान की जाती है। विडंबना यह है कि न्यायाधीशों को समान सुरक्षा नहीं दी जाती है। उन्होंने आगे कहा अपनी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर आप हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहे हैं। प्रिंट मीडिया में अभी भी कुछ हद तक जवाबदेही है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कोई जवाबदेही नहीं है।
लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है कंगारू अदालतें
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, रांची में जस्टिस एसबी सिन्हा मेमोरियल उद्घाटन में व्याख्यान देते हुए कहा- ‘न्याय देने से जुड़े मुद्दों पर टेलीविजन बहस और सोशल मीडिया पर गैर-सूचित और एजेंडा संचालित कंगारू अदालतें लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं। उन्होंने आगे कहा “हाल ही में, हम देखते हैं कि मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा है, कभी-कभी अनुभवी न्यायाधीशों को भी मुद्दों पर फैसला करना मुश्किल हो जाता है। न्याय देने से जुड़े मुद्दों पर गलत जानकारी और एजेंडा संचालित बहस लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही है।
(भाषा इनपुट से)