अतीक-अशरफ हत्याकांड के बाद क्या बोल रहा प्रयागराज?

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प्रयागराज: अतीत में इलाहाबाद और वर्तमान में प्रयागराज . उस लड़के की उम्र बामुश्किल 10-12 साल रही होगी.

ये वो वक्त था जब उसने होश संभाला ही था. चूंकि उसका ननिहाल ही इलाहाबाद था तो आना-जाना लगा रहता था. गर्मियों की छुट्टियों में वो अपने ननिहाल जाता था. मां-बाप भी साथ जाते थे. नैनी जंक्शन से ट्रेन जैसे ही आगे बढ़ती थी, वो बस टकटकी लगाकर खिड़की से बाहर झांकने लगते था. क्योंकि अगला स्टेशन इलाहाबाद ही होता था. स्टेशन से घर की रवानगी के वक्त हर बार अतीक अहमद का जिक्र होता था.उसके कमल आकार घर का और उसकी गुंडई का. क्योंकि चौफटता ओवरब्रिज के ठीक नीचे सफेद रंग का एक बंगला था, वही अतीक का घर था. इस बात को 20 साल बीत गए.

चौफटका, धूमनगंज, खुल्दाबाद, कैंट, सिविल लाइंस, झलवा, राजरुपपुर, चकिया, कसारी-मसारी…इलाहाबाद से वास्ता रखने वाला इन इलाकों से परिचित होगा. अतीक-अशरफ की हत्या भले ही देश और दुनिया के लिए कुछ भी हो मगर प्रयागराज वालों के लिए घटना शब्द ओछा है.जिन लोगों ने अतीक का रुतबा देखा होगा उनके लिए ये हत्या 48 घंटों बाद भी आंखों के सामने झूल रही है. ऐसा लग रहा है जैसे खामोशी कुछ कह रही है. समय से पहले बंद लाइटें तस्दीक हैं एक नई रोशनी की.किसको इल्हाम होगा इन अनहोनी का. मगर प्रयागराज आज कुछ शांत है. चौक की हलचल भी कम है. राजरूपपुर की 60 फिट रोड भी वाहनों के इंतजार में बेजार है.

पहला सीन, झलवा- 1

11 बजे रात को कमलेश (बदला हुआ नाम) को पता चला की अतीक-अशरफ की हत्या हो गई. उस वक्त वो छत में टहल रहा था. किसी साथी का फोन आया और वो चिल्ला पड़ा. घरवालों ने सोचा कि क्या हो गया? वो कुछ बोल पाने की हालत में नहीं था. उसने कहा कि नीचे चलो. दरवाजे बंद करो. अरे गजबई हुई गवा भाई. ई तो हम नहीं सोचे थे. तभी उसकी पत्नी झुंझलाते हुए बोलती है कि अरे अब कुछ बताओ तो क्या हुआ. अतीक-अशरफ की हत्या हो गई…खामोशी चीख रही थी. सब कोई सो गए. अगली सुबह पहले से देर में दरवाजा खुला. सूरज उरूज पर था. दफ्तर वाले दफ्तर नहीं गए, स्कूल वाले स्कूल नहीं गए. बस निगाहें सिर्फ टेलीवीजन पर…

बमरोली एयरपोर्ट रोड- सीन 2

लोकेशन नई है. रात को लड़कों के बतियाने का अड्डा भी है. कई गुमटी में भीड़-भाड़ रहती है. दो लड़के एक रेसर बाइक से रुकते हैं. गुमटी वाले से लंबी सिगरेट मांगते है साथ में कोक डाइट भी. आदतन दूसरा मोबाइल निकालता और एक पॉपअप गिरता है. अतीक-अशरफ की तीन अज्ञात हमलावरों ने हत्या कर दी. ओहहहह भाईईईईईईई…. अरे यार लाइटर दे रहा हूं जला तो लेन दे. नहीं यार, अतीक-अशरफ की हत्या हो गई वो भी इलाहाबाद में. पागल है क्या यार. क्या बोल रहा है. फेक होगा. नहीं भाई लाइव देख..लाइव यार. भाई जल्दी निकल लो यार मन अजीब हो रहा है. डर लग रहा है यार.

दोनों पेटीएम करते हैं और जब तक पेटीएम की रिंगटोन खत्म होती उससे पहले ही उनकी गाड़ी वहां से नदारद…घर आकर टेलीवीजन ऑन और देर रात तक बस वही खबर… अगली सुबह सिगरेट की दुकान पहुंचे तो बंद. फिर थोड़ा और आगे बढ़े तो वहां भी बंद. उसी इलाके की एक गली में गए तो घर पर ही एक छोटी सी दुकान खुली थी मगर वो भी बंद जैसे थी. उसने पूछा फला सिगरेट है. उन्होंने कहा नहीं बिटवा सिर्फ एक यही है. वो लेकर वहां से निकल गया.

राजरूपपुर 60 फिट रोट- सीन 3

तकरीबन तीन किलोमीटर का वो रास्ता. चौड़ी सड़क है मगर आज उसमें धूल नहीं उड़ रही. रात बारिश भी नहीं हुई की मिट्टी कुछ दब गई हो. शनिवार-रविवार भी नहीं ट्रैफिक कम हो. फिर हुआ क्या है. सड़क किनारे फैजान भाई की सिलाई की दुकान है. वो अपने दूसरे साथी को फोन करते हैं और पूछते हैं. का भाई आज दुकान-उकान खुलिहें कि नाहीं. अरे न भाई आज माहौल ब ठीक नाही. चुप्पी मारे घरिहे (घर) में पड़े रहो. अतीक-अशरफ की हत्या के अगले दिन राजरूपपुर, झलवा, कसारी-मसारी, चकिया के इलाकों में ऐसा ही दृश्य था मानों कर्फ्यू लगा हो. लोगों ने बताया कि ऐसा तब हुआ था जब कोरोना के दौरान लॉकडाउन लगा था. दुकानों के शटर बंद. रेड़ी-पटरी वाले गायब. विक्रम ऑटो का आना-जाना भी बंद था.

राजरूपपुर पुलिस चौकी- सब्जी मार्केट

शाम को यहां से निकलना दूभर होता था. तकरीबन 800 मीटर में सब्जी-फल और फूल की दुकानें और ठेले लगे होते थे. शंकर भी शाम पांच बजे सब्जी लेने के लिए बहुत मुश्किल से घर से निकले. घरवालों ने कहा कि आज मत जाओ. मगर रोज का रुटीन था तो वो मानें नहीं. हर रोज शंकर पैदल चलकर जाते थे मगर आज स्कूटी से निकले. सब्जी मार्केट में जाकर देखा तो सन्नाटा. दूर-दूर तक कुछ नहीं. सिर्फ पुलिस फोर्स. एक पुलिस वाले ने कहा- कहां जाथ हो चाचा. एक दिन मत खाओ सब्जी. वो तुरंत स्कूटी मोड़कर घर की तरफ. वहां कुछ नहीं था. पास में ही एक किराना की दुकान थी, सोचा कि वहां से दूध, ब्रेड लेकर चलो. गए तो देखा वो भी बंद.

शटर के ऊपर के बोर्ड लगा था. उसमें एक नंबर लिखा था. मोबाइल निकालकर शंकर ने फोन मिलाया. अंदर से आवाज आई. हैलो. शंकर बोला कि भाई साहब दूध हो तो दे दीजिए. घर में बच्चा है. किराने वाले ने पहले तो छत पर जाकर नीचे की ओर झाका फिर आकर एक पैकेट दूध दिया. साथ में नसीहत फ्री में दी. भाई साहब जल्दी से जाओ घर. यहां-वहां मत जाओ सीधे घर जाब. माहौल ठीक न ही है.

कहानी में जितने भी इलाकों का जिक्र किया गया है. वो सभी अतीक अहमद के घर से 2-3 किलोमटीर के दायरे पर हैं. यहां अजीब सी मायूसी है या यूं कहें कि डर. डर इस बात का कहीं कोई दंगा फसाद न हो जाए. हत्या के सोमवार को हालात कुछ पटरी पर आए. सब्जी मार्केट में कुछ दुकानें तो लगीं मगर एक घंटे के अंदर मंडी खाली हो गई. लोगों ने कहा कि पता नहीं कब कर्फ्यू लग जाए. इसी डर से सब्जी भरकर घर ले गए. किराना की दुकानों से दूध और ब्रेड गायब हो गए. मगर हालात अब सुधरते जा रहे हैं. लोग घरों से निकलने लगे हैं. चहल-पहल हो रही है. पुलिस मुश्तैद है. कामना करते हैं सब अच्छा हो.

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