सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह मामले में गिरफ़्तार किये गए मणिपुर के राजनीतिक कार्यकर्ता लीचोम्बम एरेंड्रो को रिहा करने का आदेश दिया है.
मई महीने में कुछ फ़ेसबुक पोस्ट के आधार पर 37 साल के एरेंड्रो को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत गिरफ़्तार किया गया था.
उन्होंने अपनी एक पोस्ट में कहा था – “गोबर और गोमूत्र काम नहीं करते हैं”.
हालांकि सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समय मांगा और मामले को कल तक के लिए स्थगित करने के लिए कहा लेकिन सुनवाई कर रही दो जजों की बेंच ने एरेंड्रो की तत्काल रिहाई का आदेश दे दिया.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेंच ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि – हमारे विचार से याचिकाकर्ता का लगातार हिरासत में रहना अनुच्छेद 21 का (जीने का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) उल्लंघन होगा. हम उन्हें आज शाम 5 बजे तक एक हज़ार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का निर्देश देते हैं.
एरेंड्रो के पिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी, जिसके बाद कोर्ट ने यह निर्देश सुनाया.
एरेंड्रो को पत्रकार किशोरचंद्र वांगख़ेम के साथ तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सैखोम टिकेंद्र सिंह के निधन पर कमेंट पोस्ट करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था. जिसके बाद मणिपुर भाजपा के उपाध्यक्ष और महासचिव ने उनके ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करायी थी और उनकी पोस्ट को आपत्तिजनक बताया था.
हालांकि इससे पहले भी जून 2020 में एरेंड्रो पर राज्य पुलिस ने एक अन्य फ़ेसबुक पोस्ट को लेकर देशद्रोह का आरोप लगाया गया था. यह कथित विवादास्पद तस्वीर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से संबंधित थी.
हालांकि इस मामले में उन्हें बाद में ज़मानत मिल गई थी.
इससे पूर्व बीते सप्ताह ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि आज़ादी के 75 साल बाद क्या राजद्रोह के क़ानून की आवश्यकता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह औपनिवेशिक कानून है और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ़ इसका इस्तेमाल किया गया था.
चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा “आपकी सरकार ने कई पुराने क़ानूनों को निरस्त कर दिया है, मुझे नहीं पता कि आपकी सरकार आईपीसी की धारा 124 ए (जो राजद्रोह के अपराध से संबंधित है) को निरस्त करने पर विचार क्यों नहीं कर रही है
(भाषा इनपुट बीबीसी से)