नाम लिखने के लिए दबाव ना डाला जाए’ : कांवड़ यात्रा नेमप्लेट मामले में सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये प्रेस बयान है या आदेश है. सीयू सिंह ने कहा कि यूपी प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वो अपने नाम और मोबाइल नंबर डिस्प्ले करें.
उत्तर प्रदेश मे कांवड यात्रा मार्ग की दुकानों पर नाम लिखे जाने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई जारी है. उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में NGO एसोशिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से चुनौती दी गई है. इस मामले में जस्टिस ऋषिकेश राय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की.बेंच सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ता की तरफ से वकील सीयू सिंह दलील दे रहे हैं.
कोर्ट ने पूछा ये बयान या फिर आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये प्रेस बयान है या आदेश है. सीयू सिंह ने कहा कि यूपी प्रशासन दुकानदारों पर दबाव डाल रहा है कि वो अपने नाम और मोबाइल नंबर डिस्प्ले करें. कोई भी कानून पुलिस को ऐसा करने का अधिकार नहीं देता. पुलिस के पास केवल यह जांचने का अधिकार है कि किस तरह का खाना परोसा जा रहा है. कर्मचारी या मालिक का नाम अनिवार्य नहीं किया जा सकता.
याचिकाकर्ता ने आदेश को बताया आर्थिक मौत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये स्वैच्छिक है और ये अनिवार्य नही है. याचिकाकर्ता ने कहा कि हरिद्वार पुलिस ने केस इसको लागू किया है. इसको देखे, वहां पुलिस की तरफ से चेतावनी दे गई कि अगर नही करते तो करवाई होगी. मध्य प्रदेश में भी इस तरह की कार्रवाई की बात की गई है. याचिकाकर्ता ने कहा कि ये विक्रेताओं के लिए आर्थिक मौत को तरह है.
सुप्रीम कोर्ट का यूपी सरकार से सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या सरकार ने इस बारे में कोई औपचारिक आदेश पास किया है. जिस पर वकील ने कहा कि सरकार अप्रत्यक्ष रूप से इसे लागू रही है. पुलिस कमिश्नर ऐसे निर्देश जारी कर रहे है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि हमें स्थिति को इस तरह से नहीं बताना चाहिए कि यह जमीनी हकीकत से ज्यादा बढ़ जाए. इसके तीन आयाम हैं – सुरक्षा, मानक और धर्मनिरपेक्षता और – तीनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. ये बात जस्टिस एसवीएन भट्टी ने कही जब सिंघवी ने कि ये पहचान का बहिष्कार है, आर्थिक बहिष्कार है.
सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा तो सदियों से चला आ रही है, लेकिन इससे पहले ऐसी बात नहीं होती थी. इस बारे में पहले मेरठ पुलिस और फिर मुज्जफरनगर पुलिस ने नोटिस जारी किया. सीयू सिंह ने कहा कि रिपोर्टों से पता चला है कि नगर निगम ने निर्देश दिया है कि 2000 रुपये और 5000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा. सिंघवी ने कहा कि हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले बहुत से शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं…लेकिन उनमें मुस्लिम कर्मचारी भी हो सकते हैं…क्या कोई कह सकता है कि मैं वहां जाकर खाना नहीं खाऊं? क्योंकि उस खाने पर किसी न किसी तरह से उन लोगो का हाथ है?
क्या कांवड़ियां चुनिंदा जगह से खाना चाहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कांवड़ियां क्या ये सोचते हैं कि उन्हें फूड किसी चुनिंदा दुकानदार से मिले? सिंघवी ने कहा कि कांवड़ियां पहली बार यात्रा तो नही कर रहे हैं ना वो तो पहले से करते आ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि कांवड़ियों की क्या अपेक्षा है? क्या वे यह भी कहते हैं कि खाद्यान्न किसी खास समुदाय के सदस्यों द्वारा ही उगाया जाना चाहिए? फिर कानूनी सवाल- क्या कोई आदेश है?
मामले की सुनावई में क्या बोले जस्टिस भट्टी
जस्टिस भट्टी ने कहा कि मेरा व्यक्तिगत अनुभव है. केरल में एक वेजिटेरियन होटल हिंदू और एक वेजिटेरियन मुस्लिम द्वारा चलाए जा रहे हैं. लेकिन मैं मुस्लिम होटल में गया क्योंकि वहां साफ सफाई थी. इसमें सेफ्टी, स्टैंडर्ड और हाईजीन के मानक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के थे. इसलिए गया था, ये पूरी तरह से आपकी पसंद का मामला है.
खास समुदाय के कर्मचारियों को नौकरी से निकाला गया
वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि मुजफ्फरनगर पुलिस की मुहर के साथ एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया गया है…यह उनके ट्विटर हैंडल पर भी है. याचिकाकर्ता ने कहा कि मुजफ्फरनगर पुलिस के स्वैच्छिक शब्द को दो तरीके से लिया जा सकता है, स्वैच्छिक और लागू करना ही है. हुजैफा अहमदी ने कहा कि इसका असर यह हुआ है कि इसके बाद कुछ खास समुदाय के कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है. यह पुलिस के हस्तक्षेप के बाद हुआ है…प्रेस रिपोर्ट्स में ऐसी बातें कही गई हैं.