रणजी प्लेयर असद कासिम की याद में आयोजित होगा क्रिकेट टूर्नामेंट, फादर ऑफ़ दा ऑल गेम के नाम से जाने जाते थे
उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए रणजी ट्रॉफी खेलने वाले स्वर्गीय असद कासिम को ‘फादर ऑफ आल गेम के नाम से जाना और पुकारा जाता था। वह प्रयागराज के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी जिन्होंने खेल जगत के क्रिकेट, एथलेटिक्स, फुटबाल, हॉकी, वॉलीबाल, बास्केटबाल, स्वीमिंग, क्रासकंट्री और बॉक्सिंग के क्षेत्र में गौरवपूर्ण इलाहाबादी प्रतिनिधित्व किया। छह फिट दो इंच कद-काठी वाले असद कासिम अपने समय में जिस खेल के लिए मैदान में उतरते थे लोग उनके पक्ष में नारे लगाने लगते थे, खेल जगत में उनकी बहुआयामीय प्रतिभा ने उनको ‘फादर आफ ऑल गेम्स’ की जन उपाधि दिलवाई।
असद कासिम बाएं हाथ के मध्य गति के तेज गेंदबाज थे, लेकिन मैदान में उनकी पहचान एक आलराउंडर के रूप में थी, चौके छक्के लगाने में वह माहिर थे। असद क़ासिम ने उत्तर प्रदेश के लिए 1964-65 से 1975-76 तक रणजी ट्रॉफी में खेला और हर मैच अपनी प्रतिभा और क्रिकेट शैली की गहरी छाप छोड़ी।
असद कासिम का जन्म 30 जून 1942 को ग्राम रक्सवारा कोशाम्बी में हुआ जो पहले इलाहाबाद जिले में आता था। उनके पिता स्वर्गीय ज़मीर कासिम स्वतंत्रता सेनानी थे। हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान ही असद क़ासिम की कद-काठी को देखते हुए उस समय के मशहूर प्रशिक्षक हसन अमीर ने इन्हें अपना शिष्य बना लिया था। हसन अमीर ने इन्हें 100, 200, 400, 800, और 1500 मीटर दौड़ के अलावा क्रास कन्ट्री में भाग लेने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया। वह जिला और प्रदेश स्तर पर होने वाली स्कूली प्रतियोगिताओं में ये सभी श्रेणी में प्रथम आने लगे, फिर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पहुँचे तो उनकी निखर चुकी प्रतिभा स्थापित होगी.
यूनिवर्सिटी से उन्हें नौ खेलों में ‘कलर’मिला, जो कि एक रिकार्ड है। असद कासिम ने उत्तर प्रदेश वॉलीबाल टीम से राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उतरे। उन्होंने इन्होंने रांची में उषा मार्टिन में नौकरी शुरू की और बिहार की क्रिकेट टीम से लगातार दस वर्षों तक ‘रणजी ट्राफी क्रिकेट खेले।
उस समय उन्हें तेज़ गेंदबाजी के लिए राष्ट्रीय टीम के प्रशिक्षण शिविर में भी रखा गया। असद ने 1970 में इलाहाबाद स्थित महालेखाकार ऑफिस में नौकरी ज्वाइन की जहां से उन्होंने 35 वर्षों तक सेवा की और ए. जी. ऑफिस ब्रदर हुड एसोसिएशन का सदस्य बने। वह नौकरी के दोरान जिले के नवोदित खिलाड़ियों को अपने अनुभव बांटते हुए विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण देते रहे, 2002 में सेवानिवृत्त हुए और 18 अप्रैल 2025 को नयी अपनी स्मृतियाँ दे मृत्यु लोक से विदा हो गये।