यूपी में प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ की जा रही कार्रवाई को लेकर कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर स्वत: संज्ञान लेने का आग्रह किया है.
याचिका के मुताबिक़ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से तत्काल दखल देने की अपील की गई है. अनुरोध किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट यूपी में अवैध हिरासत, नूपुर शर्मा के बयान का विरोध करने वालों, कस्टडी में रखे गए लोगों पर हिंसा और घरों पर बुलडोज़र चलाने जैसी हालिया गतिविधियों पर स्वत: संज्ञान ले.
नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की पैग़ंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर अरब देशों ने विरोध जताया था जिसके बाद बीजेपी ने नूपुर शर्मा को पार्टी से निलंबित और नवीन जिंदल को निष्कासित कर दिया था.
लेकिन, नूपुर शर्मा की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर शुक्रवार को नमाज के बाद कई राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. कई जगहों पर पत्थरबाजी और आगजनी भी की गई.
विरोध प्रदर्शनों के बाद सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. यूपी में प्रयागराज में हिंसक प्रदर्शनों के अभियुक्त जावेद मोहम्मद का घर अवैध निर्माण बताते हुए बुलडोज़र से तोड़ दिया गया है. अब पुलिस विरोध प्रदर्शनों की जांच कर रही है.
याचिका में कहा गया है कि प्रदर्शनकारियों को अपनी बात रखने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल होने का मौका देने की बजाय, यूपी प्रशासन ने ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ हिंसक कार्रवाई की मंजूरी दी है. यूपी के मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को कथित तौर पर कहा था कि ”दोषियों के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाई की जाए कि वो एक उदाहरण बने ताकि कोई क़ानून अपने हाथ में ना ले.
याचिका में ये भी दावा किया गया है कि मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि दोषी पाए जाने वालों के ख़िलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून, 1980 और उत्तर प्रदेश गिरोहबन्द एवं समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण), 1986 लगाया जाए. इन्हीं टिप्पणियों ने पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरक़ानूनी तरीक़े से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहित किया है. इसके बाद यूपी पुलिस ने 300 लोगों को गिरफ़्तार किया और विरोध प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर की. युवकों को पुलिस कस्टडी में लाठियों से पीटने, बिना नोटिस के प्रदशर्नकारियों के घर गिराने और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारियों का पीछा करके उन्हें पीटने के वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं.
याचिक के अनुसार, ”एक सत्तारूढ़ प्रशासन द्वारा इस तरह का क्रूर दमन क़ानून के शासन का अस्वीकार्य उल्लंघन है और नागरिकों के अधिकारों का हनन है. ये मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है.
ऐसे संकटकाल में न्यायपालिका की ताकत की परीक्षा होती है. कई मौकों पर न्यायपालिका को ऐसी चुनौतियों का सामना करना पड़ है और वो लोगों के अधिकारों के संरक्षक के तौर पर विजेता बनकर उभरी है. कुछ हालिया उदाहरण भी हैं जैसे आप्रवासी कामगारों और पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट का स्वत: संज्ञान लेना.
इसलिए पूर्व न्यायाधीशों ने इसी भावना के साथ और संविधान के संरक्षक के तौर पर सुप्रीम कोर्ट से उत्तर प्रदेश में क़ानून व्यवस्था की ख़राब होती स्थिति रोकने के लिए तत्काल स्वत: कार्रवाई करने का आग्रह किया. हम आशा और विश्वास करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस अवसर पर सामने आएगा और इस महत्वपूर्ण मोड़ पर नागरिकों और संविधान को झुकने नहीं देगा.
(भाषा इनपुट से)